Last updated on Thursday, August 22nd, 2019
दामिनी वेदना झकजोर गयी हो
आत्म मंथन के लिए
छोड़ गई हो
कब तक देखें
मरते हुए, नारी को
गाँवो से लेकर
शहर की सड़को तक
खेत से लेकर ,दफ्तर तक
फबतियाँ कसते, देश -द्रोहियों को
समानता की बाते करने वाले नेता को
आखिर कब तक ?
एक सवाल जहन में छोड़ गई हो
शहादत तुम्हारी,
खेले ना कुछ लोगो के हाथो में,
काम आ जाये बस ,
बहन -बेटी की अस्मत बचाने में ,
जीवन बलिदान कर ,
खोल दी आँखे ,तुमने जन- जन की ,
नारी लज्जित ना हो
अब मेरे वतन की, बेटी मेरे वतन की
दामिनी वेदना झकजोर गयी हो
आत्म मंथन के लिए
छोड़ गई हो