प्लेटफॉर्म

यूँ तो अक्सर सफर में छोटे बड़े प्लेटफार्म निकलते जाते हैं लेकिन रुक जाती हैं आँखे ये नज़र क्षण भर के लिए टाट -पट्टियों से लिपटे समाज पर शरीर के उभारो को छिपाती हुई संस्कृति पर सुखी हुई छाती से नंगे आडम्बर को दूध पिलाती […]

तेरा शहर !

कुछ तो चाँद पहले से ही अँधेरे में निकला था  कुछ चाँदनी ने घूँगट ओढ़ लिया  कुछ तो पैर फैलाने के लिए पहले ही जगह कम थी, तेरे शहर में  कुछ मयख़ाने गमो से ज्यादा बढ़ने लगे  कुछ तो तेरे शहर में पहले ही भीड़ गूंगो की […]

विरहा

तुम बिन सावन सूना  सूना मेरे मन का कोना है  कोयल बोले , मनवा डोले  विरहा आग जलाती है  तुम रूठे, सपने टूटे  सावन भी कांटे चुभाता है  हरे -हरे सब घास पैड  हरियाली सब ओर छाई है  ये कैसा अबका सावन  क्यों मेरे घर आँगन […]

क्या नहीं इस जीवन में

हर्ष है , शोक है तृष्णा है तो तृप्ति भी है क्या कुछ नहीं है इस जीवन में संघर्ष है तो सफलताएं भी है घृणा है तो प्रेम भी है भीड़ है तो तन्हाईयाँ भी है तस्वीरें है तो यादे भी है बिछुड़ना है तो […]

दहशत

  अँधेरे रास्तो से    गुजरी जो एक परछायी  दरवाजे बंद हो गए  सहमा-सहमा सा आसमान सहमी -सहमी सी रात हो गयी        खौफ था आँखों में   घाव भी हरा था  ये फिर किसने  पत्थर फ़ेंक दिया   ये फिर किस घर के  […]

बचपन

  बचपन , खुशियों से भरा    कुछ रोना , कुछ हँसना  कुछ खाना , कुछ खेलना  दिन में सोना, रात में सोना  माँ की ममता  उसका फटकारना  लोरी सुनाना  जिद करना  तोड़ना -फोड़ना  चुटकी काटना , नाखून मारना  पानी के साथ खेलना  बरसात में […]