Dr Sushil Kumar

भूख पेट से निकलकर बड़े घर की बेटी हो गयी

family bonding, Poetry, relationship

Last updated on Saturday, October 1st, 2022

प्रगति की दौड़ में रिश्ते छोड़ दिए

अपनों को अपना कहा नहीं
स्वार्थ से रिश्ते  जोड़ लिए
होड़- दौड़, और दौड़ की इच्छा से
मानव को नहीं
स्वयंम को भी पीछे छोड़ गए
चेहरे के लेप और शरीर की खुशबू
हर मुखोटे के आगे झुक गए
संस्कार, कर्त्तव्य का बोध
बीते कल का ज्ञान हो गया
अपनों को अपना कहा नहीं
स्वार्थ से रिश्ता जोड़  गए
अमीर -गरीब , छोटा -बड़ा
अपने सुख -दुःख
उसी के नाम से बाँट दिए
पहचान बताने को आज
अलग-अलग मुखौटे बना लिए
अपनों को अपना कहा नहीं
स्वार्थ से रिश्ता जोड़ गए
और भूख, पेट से निकलकर
बड़े घर की बेटी हो गयी
कदमो की आहट
हवा में कार सी हो गयी
इस शहर उस शहर
ये बाजार वो बाजार
हर चीज़ मेरे घर का
सामान हो गयी
और जिस अंगुली को ,
थामा था बाबा ने
राह पे चलना सीखाने को
राह में लोगो की
पत्थर -रोड़े और आईना
दिखाने के नाम हो गयी
भूख, पेट से निकलकर
बड़े घर की बेटी हो गयी
कदमो की आहट
हवा में कार सी हो गयी
हवा में कार सी हो गयी
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