संसार के सबसे बड़े जनतंत्र की संसद

Last updated on Saturday, July 13th, 2019

पिछले सालो से देश में संसद के अंदर, संसद के प्रतिनिधियों का व्यवहार, उनकी कार्य प्रणाली, स्पीकर महोदय के प्रति उनका रवैया और किसी भी मुददे पर उनका आपसी टकराव, सोचने पर विवश करने लगा है है कि वास्तव में संसार के सबसे बड़े जनतंत्र को निर्देशित करने वाले ये लोग देश के सर्वहित और सबके सुख की नीतियाँ निर्धारित करते हैं या फिर व्यक्तिगत और पार्टीगत मनमुटाव का फैंसला।
आन्तरिक और बाह्य खतरों के साथ-साथ देश के अंदर युवा वर्ग को एक उचित दिशा प्रदान करना उनके सामर्थ्य के लिए नीतियाँ निर्धारित करना अत्यंत आवश्यक हो गया है। संसद के विभिन्न सत्रों में सरकार द्वारा नए और संशोदित बिल पास कराना देश को विकास की ओर ले जाने का प्रयास होता है। जिस देश की छवि एक युवा देश की उभरती हो उस देश के युवाओ के अंदर आत्म सम्मान और आदर्शो को रखना बहुत ही जरूरी है। व्यक्तिगत आधार पर मुझको वर्तमान में इस बात पर कमी दिखाई पड़ती है। देश के नेताओ को पार्टी और व्यकितगत कारणों से ऊपर उठकर देश के विकास और सर्वहित के आदर्श सामने रखने होंगे अन्यथा बुद्धिजीवी युवाओ के साथ न्याय की बात करना असंगत ही होगा। 
क्या ये सम्भव नहीं हो सकता की संसद का कोई भी सत्र चलने से पहले माननीय प्रधानमंत्री जी संसद के प्रत्येक सदस्य (में.पा.) को ६ से १० घंटे का समय निर्धारित करे जिसमे वो देश की जनता द्वारा पूछे गए सवालो का लाइव टी वी पर जवाब दे। जिसका प्रसारण नेशनल टेलीविज़न पर समानांतर होता रहे। और वैसा ही संसद सत्र ख़त्म होने के बाद संसद सदस्य जनता के द्वारा पूछे गए और अपने प्रयासों को बताये। क्या ये संभव नहीं हो सकता की संसद सदस्य और जनता के बीच सत्र से पहले और बाद में संवाद हो । इस प्रणाली के लिए एक व्यवस्था की जा सकती है।  
मुझको निजी तौर पर अफसोस होता है जब किसी संसदीय क्षेत्र का नेता संसद और संसद के बहार वर्तमान सरकार से “देश की जनता” का सन्दर्भ देकर सवाल करता है.… देश की जनता पूछना चाहती है…।कृपया संसद और संसद के बहार नेता अपने संसदीय क्षेत्र का सन्दर्भ देकर सवाल करे तो क्षेत्र की समस्याओ का निराकरण होगा। केवल पार्टी अध्यक्ष और सरकार के मंत्री (“देश की जनता”) ही इनका प्रयोग करे।
ये व्यवहार कितना उचित है कि अपने अधिकारों और मांगो के लिए संसद के सदस्य, अध्यक्ष के सामने आ जाए और लाइव उनको कार्ड दिखाए और वहां पर धरना दे। मेरा माननीया वर्तमान संसद अध्यक्षा जी से निवेदन है की कृप्या या तो संसद की कार्यवाही ना दिखाये या फिर आप सब नेता लोग सहमति बनाकर अपने कार्य को पूर्ण करे। में इन दिनों व्यक्तिगत रूप से संसद की कार्यवाही को देख कर आहत हूँ । 
डा० सुशील कुमार      


डिस्क्लेमर: ये मेरे विचार किसी पार्टी विशेष से प्रभावित और रोष रूप में ना होकर देश के प्रति मेरी भावनाओ का स्वरूप है। भारत देश की संसद और उसके सदस्यों के प्रति मेरा पूर्ण सम्मान है।  
    

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