Last updated on Thursday, August 22nd, 2019
खड़ा हूँ,
सूखे पैड सा,
मेरी शाखाओ पर रहने वाले
सारी रात चिं -चिं और
उछल -कूद करने वाले
पक्षियों ने अब घोंसले
दूर कहीं बना लिए है
हवा के झोंके भी अब
गर्दन घूमाने लगे है
लक्क्ड़हारा सुनहरे-सूखे तने पर
दबी आँखों से आस लगाए बैठा है
बची शाखायें भी
रिश्तो सी टूटने लगी है
हाथो सी शाखाओं पर
कूदने वाली दोनों गिलहरी
कभी -कभी जड़े कुरेदकर
बचे हुए दानो को
ले जाती हैं अपना समझकर
जिस जमीन में पला-बढा था
आज उस मालिक ने कीमत
लगा दी है
लक्कड़हारे चारो और से घेरकर
“अपना -अपना हिस्सा “
काटने लगे हैं
ढलती शाम के साथ कुल्हाड़ियाँ
और तेज चलने लगी है
सभी जीव अपने -अपने घर को
लौट रहे हैं
पक्षियों के कलरव के बीच
कुल्हाड़ियाँ और उनकी आवाजे
चुप हो गयी है
शायद, बूढ़ा पैड
सो गया है
हाँ ! सो ही गया है
सदैव के लिए ……
बूढ़ा पैड सो गया है ………
@सुशील के १७