Last updated on Thursday, August 22nd, 2019
जीवन के इस पथ पर
बढ़ा जा रहा हूँ
मौसम बदल रहे हैं
कभी वर्षा , कभी तूफान
तो कभी पतझड़ आ रहे हैं
सब वो ही है
वो ही निश्चित क्रम है
कुछ भी तो प्रकृति ने नहीं बदला
लेकिन बदल रहा है
मेरा स्वरूप
मेरा अस्तित्व
मेरी बिखरी कल्पनायें
मेरे अव्यवस्थित शब्द
“कितना बदल गया हूँ ?”
इन सीमित वर्षो में
मगर युगो से सूरज
पूर्व से है निकला
चाँद ने अपना आकार
नहीं बदला
रात का रंग नहीं बदला
लेकिन हर क्षण
मै बदल रहा हूँ
जीवन पथ पर यूँ
बस बढ़ा जा रहा हूँ
क्या है मेरा अस्तित्व ?
कहाँ है मेरा अस्तित्व ?
की खोज और
बदलते स्वरुप के साथ
जीवन के इस पथ पर
बस बढ़ा जा रहा हूँ
बस बढ़ा जा रहा हूँ