दहशत

Last updated on Saturday, August 24th, 2019

 

अँधेरे रास्तो से 

 

गुजरी जो एक परछायी 
दरवाजे बंद हो गए 
सहमा-सहमा सा आसमान
सहमी -सहमी सी रात हो गयी 

 

 

 

खौफ था आँखों में

 

घाव भी हरा था 
ये फिर किसने 
पत्थर फ़ेंक दिया  
ये फिर किस घर के 
टुकड़े -टुकड़े हो गए 

 

 

 

तुम भी बिठालो

 

आँखों में रात को 
एक दहशत की तरहा 
या उठालो पत्थर 
बेरहमो की तरहा 
ये ख्याल मगर रखना 
ये शहर अमन चैन का था 
यहाँ लोगो ने रिश्ते
मजहब से नहीं 
इन्सानी उम्रे अंदाज से बनाये थे  
खेलो ना जात -धर्म से तुम 
यहाँ हर इंसान के 
खून का कतरा 
अभी सुर्ख़ लाल है 
यहाँ हर इंसान के
खून का कतरा 
अभी सुर्ख़ लाल है 

Leave a Comment

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

Discover more from Apni Physics

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading