आज पीछे मुड़कर देखता हूँ तो सोचता हूँ कि दिन में सपने देखना बुरा नहीं था । ये अलग बात रही की उन सपनो को पूरा करने के लिए रात को सोया नहीं था। आज के सुशील और बीते कल के सुशील में परिवर्तन का अनुभव नहीं हुआ होता अगर मेरे पास बीते समय की कुछ तस्वीरें उपलब्ध नहीं होती। आज देखता हूँ तो अपने बीते हुए समय पर आत्मिक प्रसन्नता का अनुभव होता है। कुछ सीमाओ तक वयवस्थित जीवन जीने का आदि हो चूका हूँ, रहन-सहन को एक आंशिक रूप दे दिया है। कुछ विशिष्ट व्यक्तियों के साथ विचारो के आदान-प्रदान और एक रूपता का अवसर मिलने लगा है। आँखों में भविष्य की वो चमक तेज हो जाती है, जब सवयं के निर्धारित पथ पर अपने आप को ३०० किमी की दुरी से बिना किसी सापेक्ष सिद्धांत के देखता हूँ। एक सुद्रढ़ व्यक्तित्व का अहसास ह्रदय को होता है।
संगोष्टिर्यों का आयोजन और उनमे सम्मिलित होना मेरी इच्छाओ का एक सजग सजीव रूप है। अंतर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय सम्मेलनों का एक प्रभाव, सामाजिक जीवन में व्यक्ति के सुदृढ़ होने का निश्चित परिणाम है । व्यक्ति विशेष के विचारो और उसके प्रयत्नो से सीख लेकर अपने जीवन को उचित मार्ग पर ले जाना सवयंम के दीर्ग और कटु अनुभवों को छोड़कर एक सूक्ष्म और सरल उपाय लगता है, कुछ सावधानियों के बाद। अपने एक मित्र से बड़ी उत्सुकता से पूछता रहा, की हवाई यात्रा का अनुभव कैसा होता है ? विदेश में जल का स्वाद कैसा है ? हवा कैसे चलती है ? और पता नहीं जाने क्या । लेकिन इस उत्सुकता को बड़े धैर्य पूर्वक मैने तृप्त किया है और विदेशो में सम्बंध स्थापित किये है ।
इस वर्तमान स्थिति तक एक लम्बा और कड़ुआ सफर तय किया है । माँ के देहांत के बाद स्वयं को भावनात्मक रूप से कमजोर स्थिति में अहसास किया है। आंतरिक रूप से किसी भी परिस्थिति के लिए सवयंम का निर्माण किया। लेकिन सहज कर पाना संभव नहीं । मित्रो का सदैव बड़ा सहयोग रहा है मेरे कटु व्यवहार के पश्चात भी। कभी -कभी लगता है स्वयंम का मार्ग निर्धारण से आत्म सम्मान की अधिकता हो गयी है जिसका पता अड़ियल होने से लगता है ।
मेरी कहानी का शीर्षक ३००किमी की यात्रा मेरे गाँव से चंडीगढ़ शहर की दुरी से है । उपर्युक्त चित्र मेरे जालंदर स्थित एक विशवविधालय से सम्बंधित है, जहाँ से शायद गर्दन पट्टिका वस्त्र का साधरण जीवन में प्रवेश हुआ और व्यक्तित्व को एक दिशा भी । भविष्य के लिए अभी प्रयोग चल ही रहे थे जो अब पूर्ण हो रहे हैं। एक लम्बे समय के बाद मेरे शोध कार्य ने एक दिशा को निर्धारित किया। स्नात्कोत्तर छात्रों के साथ जीवन का एक सुखद अनुभव था। जो अभी भी अनवरत चल रहा है ।
इससे पूर्व अबोहर (पंजाब) के एक नामचीन कालेज में अध्यापन का सौभाग्य प्राप्त हुआ, जहाँ स्नात्कोत्तर छात्रों के साथ जीवन का एक सुखद अनुभव था, छात्रों का मेरे ज्ञान और प्रयोग पर विश्वास ने मुझे अधिक से अधिक परिश्रम के लिए प्रेरित किया। ये जीवन की वो अवस्था थी जब में स्थायित्व के लिए प्रयासरत था और सपने सजीव करने के लिए तैयार हो रहा था। ज्ञान का बहुआयामी विकास और मानसिक परिश्रम एक भविष्य की नीव रख रहा था । पूर्ण रूप से पहली बार आतम निर्भर हो चूका था अब स्वयंम और अपने परिवार का पोषण करने में समर्थ था । कुछ छात्रों का विशेष लगाव रहा है मेरे कटु व्यवहार के पश्चात भी, या फिर मुझसे ज्यादा व्यवहारिक भी, छात्र और दोस्त का अच्छा अनुभव रहा है ।
धीरे -धीरे अपने वस्त्र और व्यक्तित्व पर ध्यान देकर उसको सुधर रहा था। दो साल के पश्चात विदाई समारोह में छात्रों या दोस्तों के साथ समय का उचित प्रयोग किया, नर्त्य की एक भवभागिनी तस्वीर से सहज ही दर्शन हो जाता है ।
उचित मार्गदर्शन के अभाव में जीवन का एक पक्ष बिना किसी निर्णायक जीत के कैसे गुजरा पता ही नहीं लगा। और जब आत्म चिंतन से जागरूकता बढ़ी तो देर हो गयी थी लेकिन स्वयंम की धनात्मक ऊर्जा को संचित करके पथ का निर्धारण कर लिया। अध्यापक की जिम्मेदारी के साथ आगे बड़ा तो पता लगा की ऐसे बहुत से हैं युवा है जो ज्ञान और जागरूकता के अभाव में अपने पथ का निर्धारण नहीं कर पाये अतय उनके मार्ग में बाधा ना आये सामाजिक सेवा ने अपनी और आकर्षित किया और एक दिशा दुसरो के उथान के लिए मिल गयी । ऐसी एक वार्ता का संयोग से पहला चित्र ऊपर दर्शाया गया है।
चंडीगढ़ विश्वविधालय की तरफ से कोई अनुदान शोध कार्य के लिए निरंतर नहीं रहा अतय ऐसे में मेरे एक -दो दोस्त बिना परवाह किये निजी अनुदान करते रहे। बहुत धीमी गति से वयक्तित्व बदल रहा था कुछ बहुत खुली पतलून से २२ इंच मोहरी पर पतलून आ चुकी थी जो निर्णायक दौर के संवादों के पश्चात भी नहीं बदली।बढ़ी दाढ़ी और पतलून से बहार लम्बी कमीज का अभी भी आदि था। समय के और मेरे अनुसार एक मेरी मनमोहक मुद्रा मेरे छात्रावास के दौरान ऊपर चित्रित है ।
थोड़ा-थोड़ा अपने चारो और के समाज को देखकर सवयंम को भविष्य के अनुसार बदलने का प्रयास जोर पकड़ता था। और बदलने का अहसास भी होने लगा था लेकिन मात्रा पर्याप्त नहीं थी। जब भी ३००किलोमीटर का सफर बस से तय करता था तो विचारो में परिवार के साथ रहना इच्छा का विषय रहता था। जो कुछ वर्षो के बाद सत्य हो गया है। ये भी जीवन की वास्तविकता रही , की जब भी किसी विषय के बारे में निर्णय ले लिया उसको अपने जीवन में उतार लिया और निरंतर प्राप्त करने का प्रयास किया है। भविष्य का आधार तैयार हो चूका था। अपनी इकहरी और छरहरी शारीरिक रचना में बदलाव का भरसक प्रयास निरंतर चलता रहा जो अभी भी उतने ही वेग से चल रहा है ।
वर्ष २००३ तक स्वयं को कुछ हद तक संभाल चूका था और नए मित्रो से संगोष्टिर्यों में मिलने का सौभाग्य प्राप्त हो रहा था , ऐसे ही पुरी ओड़िशा में एक कार्यशाला के आयोजन और उनमे सम्मिलित होने का अनुभव बहुत अच्छा रहा है । कुछ चित्रो का समायोजन कर उस अनुभव का प्रस्तुतीकरण नीचे दिखाई दे रहा है ।
मैने स्वयं को धन के मोह से दूर रखकर भविष्य की सुदृढ़ योजनाओ पर केंद्रित किया है और अभी भी ये आदर्शवादिता होने के कारण कुछ भद्रजनों से सापेक्ष रूप में पीछे हो सकता हूँ लेकिन मेरे निर्देशित अक्षो में समय के साथ अपनी महत्वांक्षाओ को सजीव रूप देकर बहुत आगे आने का गौरव भी अनुभव करता हूँ । विचारो को जीवन में महत्व देकर स्वयं की उन्नति की है, एक विचार ने मेरे प्रारंभिक जीवन में स्वपन का रूप लेकर मुझे शारीरिक दक्षता वाले कार्य से हटाकर मानसिक कार्यो के लिए प्रेरित किया है। उसमे दक्षता प्रदान की है । समय की रफ़्तार के साथ रहन सहन और व्यक्तित्व में एक सुदृढ़ता प्राप्त हुई है । लेकिन जब १७ साल पहले के सुशील से मिलता हूँ तो आश्चर्य भी होता है, वैवाहिक जीवन में एक स्वरूपता के बाद,विवाह के ३ साल बाद विधाध्यन का निश्चय कर गाँव से ५० किमी दूर एक संस्थान में प्रवेश लेता हूँ । मेरे स्नातकोत्तर के दूसरे वर्ष तक स्वयं को शिक्षा के लिए अच्छे से तैयार कर दूसरी भूमिका को ढूंढने का प्रयास चल रहा था। लेकिन अभी व्यक्तित्व में जागरूकता आ चुकी थी पर कुछ सीमाओ के कारण उसी गाँव की भूमिका में जीवन का प्रवाह चल रहा था । जहाँ मेरी कमीज घुटनो को छूकर मुझे परिवर्तन का अनुभव कराती थी, शायद ही तब तक ऐसा कोई आयोजन हो जब २४ इंच की पतलून की मोहरी उसको सहयोग न करती हो। कुछ नीचे चित्रो को देखकर इन वाक्यो का अर्थ साफ़ हो जाता है । कंधे पर दुरंगा स्वेटर, खुली कमीज और पतलून डालने की आदते अपना एक व्यक्तित्व बोलती है । रूड़की विश्वविधालय के आज़ाद छात्रावास के समय बिताये कुछ अमूल्य क्षण ।
आयु में बड़ा होना और जीवन शैली अलग होने के बाद भी एक ऊर्जा के साथ जो समय मित्रो के साथ व्यतीत हुआ आज भी सुखद अनुभव होता है। सभी का अपना अपना ध्येय था और कठिन परिश्रम के साथ जो युवा अवस्था की किर्या कलापो के साथ व्यतीत हो रहा था।
ये सब मेरे लिए नया और सुखद था। और यहीं से मेरे नए जीवन और भविष्य की नीव रक्खी जा चुकी थी। स्वयं के परिश्रम के बाद जो भी मिला सदैव सन्तुष्ट रहा हूँ और ज्ञान के लिए स्वाध्यान की आदत पड चुकी थी। अध्यापक और छात्र के आपसी प्रेरण सिद्धांत से सूक्ष्म विज्ञानं में रूची होना मेरे लिए प्रेरक विषय रहा ।
ये एक छोटा सा प्रयोग और मेरा सूक्ष्म नाभिकीय विषय में आकर्षण मुझको ३०० किमी दूर लेकर जाने वाला था और मेरी जीवन यात्रा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होगा, ये अंतिम वर्ष में किसी सीमा तक निर्धारित हो गया था। मेरे जीवन के इस पड़ाव में मेरे माता -पिता और शिक्षको की प्रेरणा मुझे सीधे और परोक्ष रूप से मिलती रही, मैं ह्रदय से उनका सदैव आभार व्यक्त करता हूँ। और जीवन में अंतिम क्षण तक अपनी महत्वाकांक्षा को एक निश्चित रूप देकर समाज के विकास का हिस्सेदार बनूँगा ।
डॉ० सुशील कुमार