श्री कृष्णा जन्माष्ठमी: एक व्रत सांसारिक कर्तव्य एवं धर्म निष्ठां के लिए

Last updated on Thursday, August 22nd, 2019

(रिफरेन्स:yogeshvara.deviantart.com से साभार )




भारतीय परम्पराओ में कुछ खास अवसरों पर व्रत रहना एक सामाजिक और राष्ट्रिय प्रचलन रहा है । कुछ ऐसे ही अवसरों पर जब परिवार के सभी लोग व्रत रखे और एक व्यक्ति न रखे तो घर की स्त्रियाँ भी उसको व्रत रखाने  के लिए प्रयास किया करती, कारण चाहे जो भी हो जैसे एक ही व्यक्ति के लिए अन्न वाला खाना बनाना या फिर अध्यत्मिकता के लिए प्रेरित करना । भारतीय समाज में शरीर की पाचन क्रिया को सवस्थ रखने के लिए भी व्रत का प्रयोजन रखा गया है। 

स्वयं की विचार धाराओ के कारण अक्सर इन अवसरों पर मुझको अकेलेपन का अहसास हुआ है, पहले माता ने तो अब पत्नी ने व्रत रहने के लिए सतत प्रयास किया है, ऐसा ही आज फिर श्री कृष्णा जन्माष्ठमी के अवसर पर मुझको व्रत रखने के लिए प्रेरित किया गया और सच कहूँ तो मजबूर किया गया है।  बड़े उपदेशो और रसोई की व्यवस्था को लेकर दिए गए उदाहरणों के बाद, उपवाश रखने का निर्णय सच ही मेरी आध्यात्मिकता और पत्नी के प्रति आभार का प्रतीक है। मेरे आश्वासन के पश्चात शांति और विजय की लहर प्रिय पत्नी के चेहरे पर दिखायी पडी थी । 

लेकिन इस संघर्ष ने मुझको आत्मशाक्षात्कार के लिए प्रेरित कर दिया, कृष्ण की लीलाओ और उसके मंचन का दर्श्य, मंदिर में झांकिया और बच्चो का कृष्ण रूप धारण करना बड़ा प्रेरक प्रसंग ह्रदय को लगा । बचपन में कृष्ण लीलाओ की कहानियाँ, टी वी धारावाहिको और गीता में श्री कृष्ण का बोध तो हुआ लेकिन जीवन में उससे प्रेरणा लेना और उसको प्रमाणित करना, वैचारिक अवस्थाओ से शायद दूर ही रहा। 

(रिफरेन्स: इन विकिपीडिया से साभार) 

आज की अवस्था में विवेचना हुई तो परत दर परत आयु के विशेष पडाओ पर स्वयं के कर्तव्य का भी बोध हुआ । श्री कृष्ण की बाल लीलाओ से सभी बालक- बालिकाओ में सवयं श्री कृष्ण का प्रतीत होना, उनके घुंघराले बाल, उनका ठुमक- ठुमक कर चलना, दही -मक्खन की हांड़ी में दोनों हाथो से खाना। मानो सूरदास  और मीरा की कविताओ में मानव जगत के लिए श्री कृष्ण को आत्मसात करने का अभियोजन रहा हो। माता देवकी और पिता वासुदेव का बालक के प्रति प्रेम और वियोग फिर श्री कृष्णा का बाबा नन्द और यशोदा के साथ वृन्दावन की  बाल लीलाओ का वर्णन सहज ही मानव ह्रदय में असीम प्रेम और सुख का संचरण करता है ।  माता यशोदा व बाबा नन्द के निश्छल प्रेम और श्री कृष्ण द्वारा बड़े भाई बलराम की आज्ञा पालन और मित्रता समाज के लिए पथ -प्रदर्शक का कार्य करती रही है । सामाजिक जीवन में मित्रता और बड़ो की आज्ञा का पालन जैसे मूल्यों पर श्री कृष्ण की लीलाओ का स्पष्ट रूप से प्रभाव दिखाई पड़ता है । 

बाल्यावस्था से किशोरावस्था में प्रवेश , युद्ध कौशल में निपुण होना व कंश का वध, इस बात का धोतक रहा है की यदि पापी और अत्याचारी व्यक्ति परिवार/समाज  में एक महत्वपूर्ण ही क्यों न हो उसका वध समाज के कल्याण के लिए जरूरी होता है । अन्यथा समाज में अराजकता और राजा के प्रति अविश्वास ही उत्पन्न होता है। अत: अत्याचारी और बलात्कारी व्यक्तियों को मृत्यु दंड मिलना समाज के हित में है। 



       (Ref: flicker.com से साभार)


इसी क्रम में मुझको एक बड़ा ही हास्यापद संवाद की विवेचना करने और गोपियों के प्रति साधारण जन की धारणा व इन अभिव्यक्तियों पर श्री कृष्ण के व्यक्तित्व का एक पक्ष सत्यता से अनभिज्ञ प्रतीत होता रहा है। कुछ विद्वान इस विषय पर समाज में भ्रम का जाल फैला कर श्री कृष्ण की वास्तिविकता मात्र सांसारिक प्रेम और बंधन पर ही आधारित रखकर स्वयं के मनोरंजन का साधन बना करते है। अज्ञानी व्यक्ति गोपियों को सुंदर स्त्रियाँ के रूप में प्रकट कर, श्री कृष्ण के प्रेम की व्याख्या रास लीला को भर्मित कर किया करते हैं।ज्ञान की धारा एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक अविरल रूप से बहती रही है। कभी सीधे शब्दों में तो कभी प्रतीकात्मक शैली के रूप में । वेदो के अतिरिक्त जो भी धरम शास्त्र हम सामाजिक व्यक्तियों को अपने उत्थान के लिए पूर्वजो ने प्रदान किये हैं वो मुख्यतया प्रतीकात्मक शैली का प्रयोग कर के लिखे गए हैं। मानो जैसे आज आपका मुख चन्द्रमा के जैसे शीतल दिखाई पड़ रहा है या आपका चेहरा कमल के फूल की भाँति खिल रहा हो, अन्य। 



 (रिफरेन्स:vishnu108.deviantart.com से साभार )


विद्वानो के अनुसार ये आत्मा भी बिना शरीर के इस सांसारिक जीवन का भोग नहीं कर सकती अतय भव सागर में उपस्थित आत्माए श्री प्रभु श्री हरी से शरीर के लिए निवेदन प्रार्थना करती है तो अज्ञानी व्यक्ति की व्याख्या गोपी, आत्मा ना होकर सुंदर स्त्री होगी, भव सागर एक नहाने का तालाब  और शरीर , कपड़े ही प्रतीत होंगे। श्री कृष्ण समाज में अराजकता को दूर कर कंश का वध करते है। यशोदा और नन्द बाबा को माता पिता तुल्य सम्मान, वृन्दावन के सभी बालक बालिकाओ को सखा सवरूप सम्मान देते है । वो युवा स्त्रियों के वस्त्र कैसे चुरा सकता है महाराज जो बात बताने की थी वो बात तो आपने नहीं बताई। यहाँ तक की भरी सभा में जब द्रौपदी को निर्वस्त्र करने का प्रसंग जब महाभारत में आता है तो श्री कृष्ण ही द्रोपदी की लाज रखते है। श्री कृष्ण लीलाओ में सभी को समाज में सामान स्थान मिला है । अर्जुन को उसका कर्तव्य बोध समाज में धरम की रीति के अनुसार प्रदान किया गया है । 

श्री कृष्ण का जीवन सांसारिक पुरुष के लिए प्रत्येक क्षण, प्रत्येक अवस्था में प्रेरणा का श्रोत है।  अत: श्री कृष्ण जन्माष्ठमी के अवसर पर शरीर को निराहार रखकर श्री कृष्ण लीला का विमोचन करने का प्रयास किया है । श्री कृष्णा जन्माष्ठमी तो एक अवसर है, एक व्रत के लिए प्रेरणा है मानव जीवन में कर्त्तव्य धर्म निर्वाह करने के लिए। 


 (Ref: flicker.com से साभार)

जय श्री कृष्णा !जय श्री कृष्णा !जय श्री कृष्णा !जय श्री कृष्णा !जय श्री कृष्णा !जय श्री कृष्णा !जय श्री कृष्णा !

  
डिस्क्लेमर: ये मेरे स्वयंम के विचार किसी को आहत या किसी विषय पर अपनी विद्धवता प्रदर्शित करने के प्रयोजन से नहीं है।

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