Last updated on Thursday, August 22nd, 2019
तेरे इश्क़ में बेख़बर हूँ कि
कुछ दरवाज़े यूँ तलाश रहा हूँ
जो इस गली इस शहर में नहीं मगर
तेरी जुस्तजू में हर चीज़ जहाँ
मै दिल के आईने से देख रहा हूँ
गुजरते लम्हे भी पूछने लगे है
अब बीती हुई अँगड़ाईयो पे सवाल
वो ख्वाब अच्छे थे शील कब
“गति से दूर” जाते देखा था जिसको
भ्रम होता तो टूट ही जाता
यूँ इतनी सलवटे डालकर भी क्यों वक़्त
आँखों से आँखे मिलाता था कोई
सुशील कुमार
कुछ दरवाज़े यूँ तलाश रहा हूँ
जो इस गली इस शहर में नहीं मगर
तेरी जुस्तजू में हर चीज़ जहाँ
मै दिल के आईने से देख रहा हूँ
गुजरते लम्हे भी पूछने लगे है
अब बीती हुई अँगड़ाईयो पे सवाल
वो ख्वाब अच्छे थे शील कब
“गति से दूर” जाते देखा था जिसको
भ्रम होता तो टूट ही जाता
यूँ इतनी सलवटे डालकर भी क्यों वक़्त
आँखों से आँखे मिलाता था कोई
सुशील कुमार