Last updated on Wednesday, October 5th, 2022

गृह स्वामिनी के व्रत अनुरोध को नकारते हुए विद्रोह का स्वर अति उन्मुख करते हुए हमने कह दिया की आज व्रत रख पाना संभव नहीं है। आँखों में दया, प्रेम और संकुचाहट के भाव लेकर बोली, आज के दिन तो सभी व्रत रखते है ! कम से कम आज के दिन तो रख लो ! पहला व्रत तो सभी रखते हैं | हमने बहाना दिया, मौसम परिवर्तन के कारण स्वास्थ्य थोड़ा अस्थिर है अगर आप बेसन के हलुए को बना दोगे तो उसको खाकर के आराम कर लेंगे बस। खाना मत बनाना हमारे लिए, बड़े अहसान पूर्वक हमने शब्दों का बाण छोड़ दिया | अर्धांगिनी, मुख पर आश्चर्य भाव को लेकर रसोई में (मेरी पसंद बेसन का हलुआ) बनाने चली गयी।
नवरात्री व्रत और सुबह का मनभावन समय
अक्टूबर की मनमोहक सुबह, अति मनोहर वातावरण के साथ में चिड़ियाँओ का अनुपम गुंजन ह्रदय में सवंदेशीलता के साथ आवाज उठाने लगा, वाह रे मनुष्य ! क्या मेरे लिए आज व्रत ( अन्न त्याग ) नहीं कर सकता? रोज मेरे सामने हाथ जोड़ता है तो फिर कैसी प्रार्थना है वो तुम्हारी? ये कैसा सम्बन्ध है हमारा और तुम्हारा? अरे! हम तो स्वयं के साथ साक्षात्कार करने लगे, अन-सुलझे सवाल हमारे मस्तिष्क में लहरों से उठने लगे तो मन की धीमी सी आवाज आयी कि अच्छा है व्रत ही कर ले| किन्तु तब तक नयनतारा तो बेसन का हलुआ बनाने में लग चुकी थी, अब तो वह बादाम और नारियल का चुरा ऊपर- ऊपर बिखेर रही थी। शर्म से रोक पाना भी तर्क संगत नहीं लगा और बेसन का हलुआ सामने देखकर तो बिलकुल भी नहीं ।पर भावावेश सोच लिया कि व्रत तो आज करना है, पर क्या व्रत केवल अन्न त्याग कर ही सम्भव हो सकता है? स्वयं से प्रश्न पूछा !!! अंत में निर्णय किया कि मानसिक व्रत करूँगा, विचारो पर नियंत्रण रखूँगा, रोज प्रतिदिन के विचारो को उनके श्रोत और माध्यम पर नियंत्रण करूँगा। हम जानते हैं माता दुर्गा शक्ति का प्रतीक है| अत: विचार शक्ति को संयमित करके स्वयं, समाज और देश निर्माण के लिए व्रत करूँगा। किसी भी विचार को, जो मेरे और समाज के हित में नहीं है उसको मस्तिष्क में स्थान नहीं दूंगा । आज कोई भी विचार जो इन भावनाओ से जुड़ा होगा जैसे कि ; दुःख, चिन्ता, भय:, कष्ट, क्रोध, आशंका और निराशा उसके लिए में अपने आपको नियंत्रण में रखूँगा।
भावो को शब्द रूपी माला में पहनाकर व्यवस्थित करने लगा ही था की आवाज आई, अब….. ये हलुआ ठंडा नहीं हो रहा है? पत्नी की आदेशात्मक शैली का आभास होते ही कलम एक और रखकर, ठंडे होते हुए बेसन का हलुआ और चाय देखी तो एक नए व्रत का अहसास हो रहा था और अब विचारो की गति भी सामान्य अवस्था में चलने लगी थी। सभी तृष्णाएं शांत होकर बैठ गयी थी। बेसन का हलुआ आज पहले से अलग लग रहा था, क्योंकि आज स्वाद जीभ से नहीं मस्तिष्क की वैचारिक पृष्ठभूमि और मानसिक धरातल से था।
I really loved reading your blog. It was very well authored and easy to undertand.