वक़्त

कौन ठहरा है  वक़्त के सैलाब के आगे  जब भी कोई दौर गुजरा  एक खण्डर की पहचान दे गया 
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बचपन

  बचपन , खुशियों से भरा    कुछ रोना , कुछ हँसना  कुछ खाना , कुछ खेलना  दिन में सोना, रात में सोना  माँ की ममता  उसका फटकारना  लोरी सुनाना  जिद करना  तोड़ना -फोड़ना  चुटकी काटना , नाखून मारना  पानी ...
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स्थायीत्व की खोज

जीवन के इस पथ पर  बढ़ा जा रहा हूँ  मौसम बदल रहे हैं  कभी वर्षा , कभी तूफान  तो कभी पतझड़ आ रहे हैं  सब वो ही है  वो ही निश्चित क्रम है  कुछ भी तो प्रकृति ने नहीं बदला  ...
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सौन्दर्यता

सौंदर्य,  सौंदर्य से ही विलासिता  जीवन का एकाकीपन  और वैराग्यता  सौन्दर्यता प्रकर्ति की  स्त्री की सौन्दर्यता रेगिस्तान में तपती रेत की  पतझड़ में सूखे पत्तो की  काले बादलो में  दौड़ती बिजली की सौन्दर्यता घुंघरूओं  में खनखनाहट की  रंग-बिरंगे फूलो में  महकती खुशबू  यौवन ...
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लक्ष्य

बाधा हो पग- पग पर  ह्रदय में हो आशा  चेतन हो कितना भी आहत  विश्राम नहीं पथ पर  उज्जवल हो अभिलाषा  थक कर चूर हुए कभी  श्रम पथ पर  तो सम्पूर्ण कर्म भाव  प्रभु चरणो में  अर्पित कर देना  परम ...
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प्रेरणा

पग – पग हो बाधा   पर लक्ष्य देखना  आगे बढ़ जाना  गीता सार यहीं  प्रत्यक्ष समाना  आहत हो तो   फिर चल जाना  एकरूप देखना  आत्मविश्वास जगाना  ह्रदय में मात्र  एक भाव प्रेम रख  स्व प्रेरित होना  समर्पण करना  लक्ष्य प्राप्ति हेतू  कर्म सार ...
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यौवन

यौवन चंचल,  है मदभरा  भँवरे की गुंजन  फूलो की खशबू  दौड़ते -भागते हिरनों  सागर की उठती लहरो  सतरंगी इन्द्रधनुष  क्षितिज को छूने वाला  मनमोहक हरा- भरा  यौवन चंचल है यौवन उत्सुकता है  अनभिज्ञता , पारदर्शिता है ऊर्जावान रचनाकार है  खिलने दो , महकने ...
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बूढ़ा पैड सो गया !

खड़ा हूँ,  सूखे पैड सा,  मेरी शाखाओ पर रहने वाले  सारी रात चिं -चिं और  उछल -कूद करने वाले  पक्षियों ने अब घोंसले  दूर कहीं बना लिए है  हवा के झोंके भी अब  गर्दन घूमाने लगे है  लक्क्ड़हारा सुनहरे-सूखे तने पर  ...
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रिश्तो का दर्द

अब तो आदत सी हो गयी है  तुम बिन जीने की  रिश्तो के दर्द भी  अंधेरो में पीने की गिर जाता हूँ हर रोज़ साँवली शाम के आँचल में  तो उठता हूँ सरे शाम  कभी मयखानों से   हाल अच्छा है रहने ...
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