पत्थर बनूँ कैसे ?
मिट्टी हूँ मै अभी पत्थर बनूँ कैसे ? बिखर ना जाऊं ज़र्रे-ज़र्रे में कहीं इस ज़र्रे को पत्थर बनाऊं कैसे ? ख़ामोश है वो क्योंकि भगवान है वो किसी शिल्पकार के हाथो तराशा पत्थर है वो
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स्कूल का पी-ओन सी -ऑफ रोबोट सूरज
स्कूल का पी-ओन सी -ऑफ रोबोट सूरज सवेरे ८ बजे आकर खोल देता है दफ्तर व्यवश्थित कर अपनी पैन्ट्री पानी की बोतले, गिलास आदि अध्यापक कक्ष में रख देता है सजाकर। बैठ जाता है कभी अपनी कुर्सी पर तो कभी ...
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शहर में रहने वाली गाँव की आधी -अधूरी मजबूरी !
(Ref:http://en.wikipedia.org) कमर पर बच्चे को बांध ...
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Labour Chouk: गाँव साइकिल पर
हर एक सुबह एक गाँव , एक शहर सड़क पर निकल जाता है गाँव साइकिल पर काम की तलाश में और शहर पैदल मन को सकून देने वाली समीर की तलाश में गाँव अपनेपन को शहर में ढूँढता है शहर सड़को ...
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स्कूल का पिओन रोबोट – सी ऑफ टू सूरज
सुबह का समय सूरज, सवेरे सुबह ८ बजे आकर ही दफ्तर खोल देता है और सबसे पहले ताजा पानी भरने का काम करता है। अपनी पेन्ट्री को साफ़ व्यवस्थित करने के बाद अध्यापको के फैकल्टी रूम में सभी सामान को ...
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यहाँ जख्मों को बाँटने का रिवाज़ चला है कुछ जख़्म हरे हो तो उन्हे बेच दिया करो
यहाँ जख्मों को बाँटने का रिवाज़ चला है कुछ जख़्म हरे हो तो उन्हे बेच दो ये बेमौसमी जख्मे सामान बिक जाएगा यूँ ही सोच- सोच कर वक़्त ज़ाया ना करो तुमको मालूम नहीं की ये जख्म पक कर कब ...
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हे ! शिशिर ऋतु तुम इतने निष्ठूर ना बनो
शिशिर ऋतु तुम इतने निष्ठूर ना बनो प्रेम समीर तो बहने दो देखो अब प्रियतम भी ऊब गए हैं धुप को आँगन में मेरे आने तो दो चिड़ियाँ भी देखो तो बच्चो संग कब से घोंसले में ही बैठी है ...
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परखने वाला नहीं मिला
तुझसे मिलकर भी मैं बिछुड़ने की भूल करता रहा हर शाम तन्हा तन्हा ख़ुद से बात करता रहा मै सीख तो गया गलतियों से मगर तुझसे बढ़कर भी मुझे कोई परखने वाला ना मिला डॉ० सुशील कुमार
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