Last updated on Thursday, August 22nd, 2019
यूँ तो अक्सर
सफर में छोटे बड़े
प्लेटफार्म निकलते जाते हैं
लेकिन रुक जाती हैं आँखे
ये नज़र
क्षण भर के लिए
टाट -पट्टियों से लिपटे
समाज पर
शरीर के उभारो को
छिपाती हुई
संस्कृति पर
सुखी हुई छाती से
नंगे आडम्बर को
दूध पिलाती हुई
अवयस्क परम्परा पर
बिखरे बालो को संवारती हुई
पतझड़ सी जवानी लिए हुए
२१ वी शताब्दी की सभ्यता पर
रुक जाती है आँखे
ये नज़र
क्षण भर के लिए
इस समाज , संस्कृति
परम्परा और सभ्यता पर