Last updated on Sunday, October 9th, 2022
कुछ रिश्ते अधूरे थे शायद,वर्ना ,
कभी ऐसा तो नहीं था,
हमारे-तुम्हारे बीच के फाँसले,
यूँ ही बढ़ गए हो ||
विरुद्ध हो गया हूँ ,कई बार,
स्वयं की विचार धाराओ से,
संभवत: कठिन होगा इस बार ,
बाँध की अकस्मात टूटी दीवारो से,
धाराओ का बहाव रोकना ||
रिश्तो में पडी गाँठ,
और गहरी होती खाई ,
प्रतिस्पर्धा की दौड़ में ,मौन बैठी रही ,
काले बादलो के बीच ,
दौड़ती और कड़कड़ाती बिजली भी ,
सम्भवत: रात भर,
खाई भरने की कोशिश करती रही, और बस,
खाई भरने की कोशिश करती रही ||