Last updated on Tuesday, May 12th, 2020
अब तो आदत सी हो गयी है
तुम बिन जीने की
रिश्तो के दर्द भी
अंधेरो में पीने की
गिर जाता हूँ हर रोज़
साँवली शाम के आँचल में
तो उठता हूँ सरे शाम
कभी मयखानों से
हाल अच्छा है रहने दे अभी
होंगे रंग बाकी कई
देखने तेरी तस्वीर के अभी
ढूंढता हूँ काली श्याह रातो में
लेकर वफ़ा की सफ़ेद छाँव
टपकता ना हो
रिश्तो का दर्द जिससे
जगह ऐसी कोई
बाकी तो नहीं अभी