Last updated on Thursday, August 22nd, 2019
यहाँ जख्मों को बाँटने का रिवाज़ चला है
कुछ जख़्म हरे हो तो उन्हे बेच दो
ये बेमौसमी जख्मे सामान बिक जाएगा
यूँ ही सोच- सोच कर वक़्त ज़ाया ना करो
तुमको मालूम नहीं की ये जख्म पक कर
कब लाल हो जाये
और ये अपनापन, ये दीवानगी
कब नासूर हो जाये
यहाँ जख्मों को बाँटने का रिवाज़ चला है
कोई जख़्म कब हरा हो जाये मालूम नहीं
कुछ जख़्म हरे हो तो उन्हे बेच दो
ये बेमौसमी जख्मे सामान बिक जाएगा
यूँ ही सोच- सोच कर वक़्त ज़ाया ना करो
तुमको मालूम नहीं की ये जख्म पक कर
कब लाल हो जाये
और ये अपनापन, ये दीवानगी
कब नासूर हो जाये
यहाँ जख्मों को बाँटने का रिवाज़ चला है
कोई जख़्म कब हरा हो जाये मालूम नहीं
वो घर वाले अपनों के बीच
दीवार खड़ी करने में माहिर हैं
कहो उनसे
कभी – कभी खुशियां भी घरो में
गैरो के बाँट दिया करो
यहाँ जख्मों को बाँटने का रिवाज़ चला है
कुछ जख़्म हरे हो तो उन्हे बेच दिया करो
सुशील कुमार