Dr Sushil Kumar

मेरी मास्को यात्रा- २०१४

Last updated on Tuesday, May 12th, 2020

बड़े ही असमंजस और दुःख के साथ कम्प्यूटर विशेषज्ञ की दुकान से वापिस लौटा, निराशा की किरण ने दस्तक तो दी लेकिन स्वयं की आशावादी प्रकर्ति ने उसको अंदर आने नहीं दिया। मेरी पावर पॉइंट प्रेजेंटेशन को वो विशेषज्ञ भी खोज नहीं पाया, आंकड़े संकलन युक्ति (हार्ड डिस्क) से।  आज शुक्रवार था और मैं अंतिम खूबसूरती दे रहा था मास्को में आंकड़ों को अच्छे प्रदर्शन के लिए । कंप्यूटर (गणक ) नामक मशीन को आराम देने, कुछ देर के लिए मैं उसको बंद करके बाकि कार्य की तैयारी करने लगा था, मास्को जाने से एक दिन पहले।
सुबह का नाश्ता  करके दुबारा कंप्यूटर (गणक ) के साथ लगी आंकड़े संकलन युक्ति को चलाना चाहा लेकिन सभी संभव प्रयास असफल हो गए और तोते उड़ने वाली कहावत मुझ पर चरितार्थ हो गयी। धैर्य की सीमा टूटने लगी थी, कहीं संघ्रक्षण था तो विशवविधालय के कंप्यूटर (गणक ) में था जहाँ जाना अब संभव नहीं था। एक आशा की किरण के साथ कम्प्यूटर विशेषज्ञ की दुकान पर गया लेकिन  खाली हाथ लौटना बड़ा ही दुखदायी लगा लेकिन आरम्भ से अंत तक निर्माण तो करना ही था। सवयं को धनात्मक ऊर्जा के साथ जोड़ने के सिवाय मात्र कुछ भी नहीं था और दोपहर के १२ बज चुके थे। मन में ऊर्जा का संचरण किया और कार्य प्रारम्भ कर दिया, देर सायं काल तक निर्माण कार्य आंशिक रूप से पूरा हो चूका था। लेकिन इस कार्य के साथ अहसास और जो अनुभव हुआ वो बिलकुल ही अलग था, १). मुझे अपना कार्य अलग अलग स्थान पर सुरक्षित रखना चाहिए था, किया लेकिन इ-मेल के साथ नहीं किया जो करना चाहिए था।  २). पट्टिकाएं (स्लाइड्स ) दुबारा बनाने से मेरा आंकड़ों को प्रदर्शन के लिए अच्छे से अभ्यास हो गया।  और मेरे आत्मविश्वास में अधिक वर्द्धि हुई ।
विदेश यात्रा का पहला अनुभव कुछ अच्छा नहीं था और अभी से ये जो संकेत मिला तो लगा आगे जाने क्या होगा। यात्रा सही समय से प्रारम्भ कर चंडीगढ़ से नई दिल्ली पहुचना था जहाँ सुबह ४ बजे के आस -पास विमान को मास्को के लिए प्रस्थान करना था। पीएचडी शोध कार्यो के समय से ही जॉइंट इंस्टिट्यूट फॉर न्युक्लीअर रिसर्च, दूब्ना, रूस को बहुत सुना और पढ़ा था तो एक उत्सुकता भी थी उस स्थान को देखने के लिए। हवाई अड्डे पहुचने पर सरकारी औपचारिकताओं के बाद विमान प्रस्थान स्थान की और कदम बढ़ाये तो कुछ जाने पहचाने वयक्ति विशेष मिले और परिचय हुआ। 
सुबह के ४:४० बजे विमान का प्रस्थान निश्चित था जो बिना देरी के साथ तैयार खड़ा था। विमान में प्रस्थान के लिए धवनि घोषक यंत्र से उच्चारण हुआ और हम सभी विमान के दरवाजे की ओर बढ़ गए। कुछ मानवीय न होकर आर्थिक विभेतता (इकोनॉमी और बिज़नेस क्लास ) के आधार पर यात्रियों को बुलाया गया (ये नई देल्ही में ही देखा )। और मैं भी अपनी सीट पर जाकर बैठ गया। रात्रि जागरण होने से देह थोड़ा सा असहज हो रही थी लेकिन रूह को आराम था। सोने का प्रयास किया ही था की साथ वाले रूसी महिला यात्री ने सुबह के नाश्ते के लिए जगा दिया। स्त्री को धन्यवाद दिया और विमान परिचारिका को शुद्ध शाकाहारी नाश्ते के लिए निवेदन किया। 
सुबह के नाश्ते से दो चार कर,  फिर से आँखों को बंद करने का प्रयास किया और कुछ देर के लिए सो गया। आँखे खुली तो नीचे देखा (खिड़की के पास वाली सीट) कभी बादल तो कभी ऊपर नीचे सतह वाली पृथ्वी का अवलोकन होता रहा और मैं अपनी भूविज्ञान की क्षमता का पूरा परिक्षण करता रहा। मास्को शहर से पहले का जो भूविज्ञान और प्रकृति का विमोचन हुआ बड़ा ही ह्रदय को छूने वाला था। आकाश से जो सुंदरता पृथ्वी क्षेत्र की हुई बड़ी ही मनमोहक थी। हरे-हरे जंगलो के मध्य टोपिकार घर ,छोटे -बडे जलाशय और नदी का चित्रण बड़ा ही सुहावना लग रहा था। आज का मौसम अनुकूल नहीं था बिजली आकाश में चमक रही थी और घने काले बदलो से सामना हो रहा था। काले और सफ़ेद बादलो की परतो के मध्य से विमान नीचे उतर रहा था, विमान परिचारिका सुरक्षा कारणों से कुर्सी पट्टिका बांधने का अनुमोदन कर रही थी। 
कुछ समय बाद विमान मास्को हवाई अड्डे पर उतरने के लिए तैयार था और निर्धारित समय से कुछ मिनट के बाद हम सुरक्षित हवाई अड्डे पर  उतर गए। यात्रियों ने तालियां बजाकर विमान चालक दाल और स्टाफ का धन्यवाद किया।  कुछ ही समय बाद हम निकासी द्वार पर आ गए, जहाँ हम सब की अगवानी के लिए व्यक्ति विशेष प्रतीक्षा कर रहा था। परिचय और पहचान के बाद हम सभी अपना सामान लेकर गाडी में बैठ गए, कुछ दूसरे विमान से पहुंचे विद्वान वयक्तियों से भी परिचय हुआ। 
गाड़ी अपनी निर्धरित गति सीमा से आगे बढ़ी जा रही थी और मैं अपनी खिड़की से मास्को की तस्वीर आँखों में  उतार रहा था और एक तुलनात्मक दर्ष्टि से अपने देश शहर की आधारभूत संरचना को समझने का प्रयास कर रहा था की मेरे देश की विकास गति धीमी क्यों ? और कुछ इसी कशमकश में गंतव्य स्थान आ गया। बाहर का वातावरण बड़ा ही ठंडा था और सर्द हवाएँ चल रही थी। होटल के स्वागत स्थान पर कुछ ओप्चारिक्ताये हुई और में भी अपने कमरे की चाबी लेकर तीसरी मंजिल पर चला गया। सभी लोग थके थे जाते ही सामान रखकर सो गए । 
सायं काल को मिले और कल के कार्यक्रम की जानकारी ली। रात्रि का खाना खाया और कुछ देर बात करने के बाद में अपने कमरे में आ गया और अपनी पट्टिकाएं (स्लाइड्स ) दुबारा संसोधित करने लगा। अंतिम रूप देने के बाद अलग अलग स्थानो पर रखा और सोने की तैयारी करने लगा। बाहर देखा तो दिन था घडी देखी तो रात के ११ बजे थे, बड़ा ही कोलाहल हुआ। लेकिन सुबह समय पर उठना था तो कुछ समय बाद सोने की तैयारी की लेकिन नींद नहीं आई, फिर कुछ देर काम किया और सो गया। मेरे कमरे से ली गयी पहली तस्वीर नीचे लगी है । 
एक बड़े हॉल में मीटिंग की ओपनिंग हुई और दोनों और के सदस्यों ने अपने विचार रखे। कार्यशाला आरम्भ हो चुकी थी एक ही संस्थान के अंदर भिन्न भिन्न क्षोध केन्द्रो का अवलोकन हुआ। रूस की इस प्रगति और १९५० में केन्द्रो का यह विकास देखकर सभी लोग बड़े ही विस्मय में थे। मेरी यात्रा भी मुझको फलदायी लग रही थी। १७ जून को बी ल टी पी न्युक्लीअर थ्योरी केंद्र पर मेरी स्लाइड्स का प्रदर्शन और व्याख्यान हुआ, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर यह दूसरा सौभाग्य था। व्याख्यानके बाद रूसी वरिष्ट्र प्रोफेसर का आशीर्वाद प्राप्त हुआ जो मेरा सौभाग्य ही है। एक पर्सनल मीटिंग हुई और भविष्य में क्षोध सम्भवनाओ पर विचार हुआ। 
 इस कार्यशाला के दौरान एक दिन की मास्को यात्रा का भी कार्यक्रम रखा हुआ था, सभी को १८ जून को सुबह ७ बजे तैयार होकर होटल के बाहर मिलना था। नाश्ते के लिए रेडी मेड पैकेट की वयवस्था कर दी गयी थी क्योंकि भोजनशाला का समय निर्धारित था। सभी अपना नाश्ता लेकर बस में बैठ गए। 
 कार्य दिवस होने की वजह से सड़को पर गाड़ियों की लम्बी कतार लेकिन अनुशाशन में । किसी भी गाड़ी चालक ने अपनी साइड, सड़क से हटकर गाड़ी नहीं चलायी जैसा की इस चित्र में दिख रहा है की एक साइड खली होने पर भी चालक ने गाड़ी को आगे नहीं बढ़ाया। पैदल सवार के लिए सम्मान जो मुझे अपने देश के गाड़ी चालकों में नहीं दिखायी देता। खैर ये कुछ क्षत्रिय सीमाये हो सकती है। और कुछ देर बाद इस काफ़िले से निकलकर हम मास्को की ओर बढ़ने लगते हैं, मैं अपने तस्वीर संग्रक्षण यंत्र (कैमरा) को तैयार कर लेता हूँ आने वाले पलो को याद रखने के लिए । 
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