Dr Sushil Kumar

तेरा शहर !

Last updated on Thursday, August 22nd, 2019



कुछ तो चाँद पहले से ही अँधेरे में निकला था 

कुछ चाँदनी ने घूँगट ओढ़ लिया 

कुछ तो पैर फैलाने के लिए पहले ही जगह कम थी, तेरे शहर में 
कुछ मयख़ाने गमो से ज्यादा बढ़ने लगे 

कुछ तो तेरे शहर में पहले ही भीड़ गूंगो की कम नहीं थी 
कुछ बहरो ने हंगामा भी आज खूब कर दिया 

कुछ तेरे शहर में रोटी कमाना बड़ा मुश्किल था 
कुछ भिखारी निकम्मे दरवाज़े पे बैठने लग गए 

कुछ तो इस शहर की नींव पहले ही कमजोर थी 
कुछ तुमने चारदीवारी घर की रेत् से बनवा दी 

कुछ तो इस शहर की गलियां तंग थी 
कुछ भेड़ियों ने शराफ़त ओढ़ ली 

कुछ तो इस शहर में पहले ही धुँवा कम था 
कुछ लोगो के दिल बुझ गए 

कुछ तो नींद भरी थी आँखों में तेरी 
कुछ शोलो का डर अभी बाकि दिखने लगा था 

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