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वो एक शहर था, टूटना, बसना उसकी फितरत थी

Last updated on Friday, October 7th, 2022

ऐ खुदा! हम तो इश्क़ में तेरे पहले से ही पागल हैं यूँ अहले तसव्वुफ़ दीवानगी से पर्दा ना हटा | ये तेरी शौहबत है या मोहब्बत मेरी मुझको इल्म नहीं, ऐ मौला मेरे, मुझे अपने से यूँ तो बेगाना ना बना ||  
  वक्त हूँ शाम होते- होते अँधेरा हो ही जाऊंगा, ज़ामें रुस्वाइयाँ ख्याले-दर की तेरे पी ही जाऊंगा, हर रात मेरी हक़ीक़त हैं, दोपहर गुलिस्तां तेरी जानिब, कुछ दिन ठहर महफ़िलो में,  ऐ खुदा! कुछ दिन ठहर महफ़िलो में, यूँ ग़ुलाबी रोशनियां ना जला, मुद्दतों से भीड़ तेरे चाहने वालो की बहुत है काबिल, पर मुझे टूटी हुई तस्वीरो में, यूँ दीवारों पर ना सज़ा  ||   वो हर इक शख्श एक शहर था, टूटना, बसना-उजड़ना उसकी फितरत थी, तू मुसाफ़िर है सुशील, ख़ुदा के वास्ते, हर राहे-दरवाजे पे पैर संभाल के रखता होगा  || और जहाँ अहसास है मंजिल का खुद की सबको , उस खुदा ऐ नूर से रोशन इस जहां में,  यूँ ही तो सफ़र पूरा नहीं होता होगा  ||
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