Last updated on Sunday, October 20th, 2019
जीर्ण-क्षीण हुआ
फल पड़े थे , मगर
एक अहसास , खरीद लिया।
इस कविता में एक लड़का आठ -नौ साल का , जो थका , भूखा सा एक पुरानी लम्बी सी shirt और फटी हुई पैंट पहेने हुए फल बेच रहा है । वह जमीन पर अपनी फलो की टोकरी (basket) के साथ बैठा हुआ है । वह बड़े ही उत्साह से आने जाने वालो से प्रार्थना करता है फलो को खरीदने के लिए। मै आश्चर्य मै हूँ कि जिस उम्र में बच्चे घर मै फलो की टोकरी से फल नहीं छोड़ते है यह बच्चा भूखा होकर भी उनको नहीं खाता है । शायद कोई उससे फल खरीद ले तो उसके चेहरे पे मुस्कान आ जाए । इसी reference में इस कविता की रचना हुई है ।
In this poem, a boy of 8-9 yrs old, seems tired, hungry with a
long shirt and old pant is selling fruits. He is sitting on the earth
with his basket of fruits and ask to everyone who passes near to that
with full of energy that please buy his fruits……..the age in which
many children can not control to take and eat the fruits from basket in
home…..that boy is selling….in spite of hunger………anyone can
give a momentary pleasure on his face by buying his fruits, an amazing feeling.