जीवन के इस पथ पर बढ़ा जा रहा हूँ मौसम बदल रहे हैं कभी वर्षा , कभी तूफान तो कभी पतझड़ आ रहे हैं सब वो ही है वो ही निश्चित क्रम है कुछ भी तो प्रकृति ने नहीं बदला लेकिन बदल रहा है मेरा स्वरूप […]
सौंदर्य, सौंदर्य से ही विलासिता जीवन का एकाकीपन और वैराग्यता सौन्दर्यता प्रकर्ति की स्त्री की सौन्दर्यता रेगिस्तान में तपती रेत की पतझड़ में सूखे पत्तो की काले बादलो में दौड़ती बिजली की सौन्दर्यता घुंघरूओं में खनखनाहट की रंग-बिरंगे फूलो में महकती खुशबू यौवन के उजाले में बिखरी सौन्दर्यता सूखे […]
खड़ा हूँ, सूखे पैड सा, मेरी शाखाओ पर रहने वाले सारी रात चिं -चिं और उछल -कूद करने वाले पक्षियों ने अब घोंसले दूर कहीं बना लिए है हवा के झोंके भी अब गर्दन घूमाने लगे है लक्क्ड़हारा सुनहरे-सूखे तने पर दबी आँखों से आस लगाए […]
अब तो आदत सी हो गयी है तुम बिन जीने की रिश्तो के दर्द भी अंधेरो में पीने की गिर जाता हूँ हर रोज़ साँवली शाम के आँचल में तो उठता हूँ सरे शाम कभी मयखानों से हाल अच्छा है रहने दे अभी होंगे रंग बाकी कई […]
मिट्टी हूँ मै अभी पत्थर बनूँ कैसे ? बिखर ना जाऊं ज़र्रे-ज़र्रे में कहीं इस ज़र्रे को पत्थर बनाऊं कैसे ? ख़ामोश है वो क्योंकि भगवान है वो किसी शिल्पकार के हाथो तराशा पत्थर है वो
स्कूल का पी-ओन सी -ऑफ रोबोट सूरज सवेरे ८ बजे आकर खोल देता है दफ्तर व्यवश्थित कर अपनी पैन्ट्री पानी की बोतले, गिलास आदि अध्यापक कक्ष में रख देता है सजाकर। बैठ जाता है कभी अपनी कुर्सी पर तो कभी चहल कदमी दफ्तर में बिरहा […]