दामिनी वेदना झकजोर गयी हो आत्म मंथन के लिए छोड़ गई हो कब तक देखें मरते हुए, नारी को गाँवो से लेकर शहर की सड़को तक खेत से लेकर ,दफ्तर तक फबतियाँ कसते, देश -द्रोहियों को समानता की बाते करने वाले नेता को आखिर कब […]
(Ref:http://en.wikipedia.org) कमर पर बच्चे को बांध हाथ में पत्थर तोड़ने का […]
हर एक सुबह एक गाँव , एक शहर सड़क पर निकल जाता है गाँव साइकिल पर काम की तलाश में और शहर पैदल मन को सकून देने वाली समीर की तलाश में गाँव अपनेपन को शहर में ढूँढता है शहर सड़को पे निकलकर गाँवों को देखता […]
सुबह का समय सूरज, सवेरे सुबह ८ बजे आकर ही दफ्तर खोल देता है और सबसे पहले ताजा पानी भरने का काम करता है। अपनी पेन्ट्री को साफ़ व्यवस्थित करने के बाद अध्यापको के फैकल्टी रूम में सभी सामान को ढंग से रखता है, पानी […]
यहाँ जख्मों को बाँटने का रिवाज़ चला है कुछ जख़्म हरे हो तो उन्हे बेच दो ये बेमौसमी जख्मे सामान बिक जाएगा यूँ ही सोच- सोच कर वक़्त ज़ाया ना करो तुमको मालूम नहीं की ये जख्म पक कर कब लाल हो जाये और ये […]
शिशिर ऋतु तुम इतने निष्ठूर ना बनो प्रेम समीर तो बहने दो देखो अब प्रियतम भी ऊब गए हैं धुप को आँगन में मेरे आने तो दो चिड़ियाँ भी देखो तो बच्चो संग कब से घोंसले में ही बैठी है नन्हें बच्चो के पंख आने […]
तुझसे मिलकर भी मैं बिछुड़ने की भूल करता रहा हर शाम तन्हा तन्हा ख़ुद से बात करता रहा मै सीख तो गया गलतियों से मगर तुझसे बढ़कर भी मुझे कोई परखने वाला ना मिला डॉ० सुशील कुमार
मेरी हसरते तेरे मुकाम की मोहताज नहीं मै जीता हूँ की बस साँसो को आने- जाने का ख्याल होता रहे मुझे किसी के दिल की आवाज अक्सर दस्तक तो देती है क्यों यूँ मै हर शाम से दरवाजा अब खुला रखता हूँ यूँ ! शराफ़त की बन्दिश लगी ना होती यूँ […]
तेरे इश्क़ में बेख़बर हूँ कि कुछ दरवाज़े यूँ तलाश रहा हूँ जो इस गली इस शहर में नहीं मगर तेरी जुस्तजू में हर चीज़ जहाँ मै दिल के आईने से देख रहा हूँ गुजरते लम्हे भी पूछने लगे है अब बीती हुई अँगड़ाईयो पे सवाल वो […]