भूख पेट से निकलकर बड़े घर की बेटी हो गयी

प्रगति की दौड़ में रिश्ते छोड़ दिए अपनों को अपना कहा नहीं स्वार्थ से रिश्ते  जोड़ लिए होड़- दौड़, और दौड़ की इच्छा से मानव को नहीं स्वयंम को भी पीछे छोड़ गए चेहरे के लेप और शरीर की खुशबू हर मुखोटे के आगे झुक गए संस्कार, कर्त्तव्य का बोध बीते कल का ज्ञान हो गया अपनों को अपना ...
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