school education

Dr Sushil Kumar

School Education: स्कूली शिक्षा का महत्व और प्रभाव

Education, School, Self-Help, value education

Last updated on Monday, October 7th, 2019

School Education

जीवन में स्कूली शिक्षा (school education) का महत्व और प्रभाव दीर्गगामी होता है। एक बच्चा पारिवारिक परिवेश से समाज में विलेयता की ओर स्वंयम और समाज के उत्थान की ओर एक कदम बढ़ाता है। पारिवारिक संस्कारो से युक्त होकर देश और समाज की संस्कर्ति को सीखता है, प्रयोग करता है। समाज में सवयंम की हिस्सेदारी निर्धारित करने हेतु अनथक परिश्रम और समाज के प्रति संवेदनशीलता मुख्यता जीवन का उद्देश्य हो जाता है। 

भारतीय संस्कृति में अध्यापक का विशेष महत्व रहा है| माता -पिता की आज्ञा और अध्यापक के वचनो का सीधा प्रभाव केवल भारत देश में ही दिखाई प्रतीत होता है । अध्यापक द्वारा कहे गए वचन छात्र के लिए जीवन भर उत्साह और एक ऊर्जा का संचरण करते रहते है । ये भारत देश की संस्कृति ही है, जहाँ अध्यापक (teacher) के वचनो की सत्यता और महतत्व का माता-पिता द्वारा बनाये गए मानक पीछे होकर छात्र जीवन में बच्चे की प्राथमिकता पर आ जाते हैं। अत: अध्यापक समाज का एक अभिन्न और महत्वपूर्ण अंग है, जिसका दायित्व समाज की परिस्थितियों के अनुसार निर्धारित होता है।

ज्ञान का मूलयांकन

छात्र जीवन (student life) में एक बच्चा कभी अनुकूल तो कभी प्रतिकूल, भिन्न-भिन्न परिस्थितियों से गुजरता है और इन्ही अनुभवों से अपने जीवन को भविष्य में लक्ष्य प्राप्ति के लिए व्यवस्थित करता है । सफलता प्राप्ति हेतु अनथक प्रयास और मेहनत अवश्यंभावी ही है । छात्र जीवन में शिक्षा (education) और ज्ञान (knowledge) का मूलयांकन सवयं नहीं हो सकता और कभी प्रयासों की कमी के कारण परिणाम इच्छानुसार नहीं मिल पाता। इन अन्नेछिक परिणामो के कारण छात्र जीवन में क्षणिक अवसाद आ जाता है। 

यहाँ पर ध्यान रखने हेतु पंक्तियां जिसको सदेव मैंने जीवन में जिया है कुछ इस प्रकार है ” मेरी सफ़लता और असफ़लता इस बात पर निर्भर नहीं करती की मेरा मूल्यांकन करने वाले व्यक्ति मुझे सफ़ल और असफ़ल घोषित करे| मेरे जीवन की सफलता और असफलता तो मेरे ह्रदय और मानसिक मानदंडो पर मान लेने पर निर्भर करती है |

मैं असफल हूँ केवल मेरे स्वयंम के स्वीकार करने से अन्यथा मैं मूलयांकन कर्ता के अनुसार परिणाम न देने पर सवयंम को असफ़ल स्वीकार नहीं करता”।  एक छात्र और विद्यार्थी के जीवन में कितनी ही क्षणिक शारीरिक, प्राकृतिक और वैचारिक बाधाएं आये लेकिन अपना आत्मविश्वास प्रत्येक परिस्थति में बनाये रखे और विजय प्राप्त करे ।

परिवार, समाज और देश की परम्परा

प्राय: विद्यार्थी ज्ञान धारा (stream of school education) से हटकर अपने आप से ही धोखा कर लेता है, इस प्रकार के उदाहरण परीक्षा कक्ष में देखने को मिल जाता है । नक़ल कोई ज्ञान और परीक्षा पास करने का समाधान नहीं है। विद्यार्थी का एक धर्म है केवल ज्ञान प्राप्ति और वो भी सवच्छ निर्मल साधनो से परम्पराओ का आदर करके। विधार्थी को ऐसी किसी भी विचार से बचना चाहिए जो उसके मार्ग में बाधा उत्पन्न करे। ऐसे किसी भी कार्य से प्रेरणा ना ले जो उसके विचारो के विपरीत हो |

यहाँ पर ध्यान देने योग्य ये विचार है की आपको पता कैसे लगे की कोई कार्य गलत है या सही ? इसके लिए बड़ा ही साधारण प्रयोग है “जिस कार्य को करते हुए आपको डर लगे वो कार्य गलत है और जिसको करते हुए आप भयभीत हो, डर लगे वो कार्य उचित नहीं है “ लेकिन इस पंक्ति की अपनी सीमा है फिर भी एक मानक की भांति मेरा सहयोग करती है । अपने परिवार, समाज और देश की परम्पराओ को ध्यान में रखते हुए एक विद्यार्थी को अनथक परिश्रम करते हुए अपना लक्ष्य साधना चाहिये। देश की प्रगति में अपनी हिस्सेदारी निर्धारित करे और समाज का विकास करे, सहयोग दे । 

5 2 votes
Give Your Rating
Subscribe
Notify of

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

0 Comments
Newest
Oldest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments

Discover more from Apni Physics

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading